आई नोट , भाग 6
अध्याय-1
एक बढ़िया ज़िंदगी
भाग-6
★★★
शख्स ने गाड़ी धीरे-धीरे दोनों पुलिसवालों के पास लाकर रोक दी। उनमें से एक 40 साल की उम्र वाला पुलिस वाला पास आया और खिड़की में से झांकते हुए शख्स से पूछा “कहां से आए हो?”
शख्स ने स्टेरिंग पर अपनी उंगलीया नचाई और जवाब देते हुए कहा “जी ऑफिस से आ रहा हूं। मैं एचऐन पब्लिकेशन में राइटर काम करता हूं।”
पुलिस वाले ने उसे थोड़ा इंटरेस्टिंग अंदाज से देखा “ओह, राइटर हो। कोई कहानी भी लिखते हो या बस नाम की राइटर हो?”
शख्स ने सामान्य भाव दिखाया “कहानी!! फिलहाल तो नहीं। अभी एक चल रही है मगर वह कब आएगी और लोगों का उस पर रिस्पॉन्स क्या रहेगा... मैं इस बारे में नहीं जानता।”
“अच्छा, तो चलो अपनी गाड़ी की तलाशी दो। डिक्की खोलो गाड़ी की।” इस्पेक्टर खिड़की से हटा और पीछे की तरफ जाने लगा।
शख्स ने स्टेरिंग पर ऊंगलीयां नचाना बंद की और मन ही मन बोला “डिक्की खोल कर देखने वाली कौन सी बात है इस्पेक्टर साहब, मैं कातिल हूं, आप मुझे बिना डिक्की देखे ही पकड़ सकते हैं। फिर डिक्की देखेंगे, बेवजह फालतू के एक्सप्रेशन देंगे, इसके बाद कहेंगे तुम्हारी गाड़ी में लाश, फिर 100 तरह के सवाल होंगे, बलाह बलाह... लाश कहां से आई... ये...वो... इतना झमेला क्यों करना। डायरेक्ट हथकड़ी लगाओ!”
इस्पेक्टर ने पीछे अपने डंडे को डिक्की पर मारा “आप आए नहीं अभी तक...!”
शख्स अपने मन में बोला “आ रहा हुं बे... ऐसे क्या जान निकल रही है तेरी...”
शख्स ने गाड़ी का दरवाजा खोला, चाबी ली और तेजी से डिकी की तरफ गया, वहां जाते ही उसने चाबी लगाई और फटाक से डिकी खोल दी।
डिक्की खोलने के बाद उसने अपने दोनों हाथों को आईए के अंदाज में डिक्की की तरफ किया और मन ही मन बोला “लीजिए... कीजिए अपनी नौटंकी चालू।”
इस्पेक्टर डिक्की को हैरत से देखने लगा। डिक्की को हैरत से देखने के बाद उसने चेहरे पर मुस्कुराहट दिखाई और शख्स से बोला “क्या बात है राइटर साहब, आप राइटर होने के साथ साथ फूलों का धंधा भी करते हैं क्या? यह इतने सारे फूल लेकर कहां जा रहे हैं!”
“फुल!!” शख्स ने यह सुना तो उसने भी डिक्की की तरफ देखा। डिक्की में ऊपर की तरफ फूलों के दो बड़े बड़े लिफाफे पड़े थे जो खुले हुए थे। लाश उन लिफाफा के नीचे थी और सामने से देखने पर दिखाई नहीं दे रही थी। शख्स ने देखा तो अपने चेहरे पर अजीब से एक्सप्रेशन बना लिए। उसने उन्ही एक्सप्रेशन के साथ अटकते हुए कहा “फूल...!! ओह..हां...!! फुल...! वह दरअसल आज हमारे घर में पार्टी है। पत्नी ने कहा था कि घर फूलों से सजाना है, बस इसीलिए मैं इन्हें घर पर ले कर जा रहा हूं।”
“पार्टी? किस बात की पार्टी?” इंस्पेक्टर ने हंसमुख अंदाज दिखाया।
“एनिवर्सरी..” शख्स ने थोड़ा सोचते हुए जवाब दिया “एनिवर्सरी है आज हमारी। बस उसी की पार्टी है।”
“ओहो... तो मतलब आज रात तो मजे है तुम्हारे।” उसने चीयर अप किया और गाड़ी की डिक्की खुद ही बंद कर दी।
शख्स ने अपने चेहरे के भावों को बिना बदले एक छोटी सी हल्की मुस्कान दी। मुस्कान देने के बाद उसने कहा “बिल्कुल... आज रात तो सच में मजे हैं।” शख्स ने भी अपनी चाबी डिक्की से निकाल ली।
इस्पेक्टर ने फ्रेंडली व्यवहार को थोड़ा आगे बढ़ाया और कंधा थपथपाते हुए शख्स को बोला “ठीक है लेखक साहब, निकलिए अब, फ्यूचर में आपकी किताब के लिए आपको शुभकामनाएं। उम्मीद करुंगा आप की कहानी आपको नए मुकाम पर पहुंचाएगी।”
शख्स ने यह सुना तो एक मुस्कुराहट दिखाकर अपने मन में कहा “वेल... कहानी का तो पता नहीं... मगर आपका यूं मुझे छोड़ना जरूर मुझे किसी नए मुकाम पर पहुंचाएगा। अगर मुझे ऊपर नहीं पहुंचाया... तो आपका मुझे यूं छोड़ना कुछ बंधुओं को जरुर ऊपर पहुंचा देगा।”
उसने चाबी को हाथ में उछाला और उछालते हुए तिखी मुस्कुराहट के साथ कार में जाकर बैठ गया। कार में बैठने के बाद उसने कार स्टार्ट की और उसे चलाने लगा। कुछ देर तक कार मेन रोड पर चलती रही। इसके बात सामने एक सड़क आई जो जंगल की तरफ जा रही थी। शख्स ने गाड़ी को उस तरफ घुमाया और जंगल की ओर मोड़ दिया।
गाड़ी को उस तरफ मोड़ने के बाद शख्स ने अपने मन में विचारों को बुना और कहा “मेरी जिंदगी में ऐसे खतरे कभी-कभी ही आते हैं। हां आज का खतरा थोड़ा बड़ा था, इससे पहले कभी एक लाश के साथ मेरा सामना पुलिस से नहीं हुआ। अमूमन मैंने इससे पहले कभी लाश को इतना दूर ठिकाने लगाया ही नहीं। यह मेरा पहला कत्ल है जहां मैं लाश को लेकर जंगल की तरफ जा रहा हूं। हर इंसान की जिंदगी में कुछ ना कुछ नया होता रहता है, ऐसे में मैं इससे कैसे बच सकता हूं। खैर..” उसने सामने दूर तक नजर दौड़ाई “सफर लंबा है तो क्यों ना मैं अपने पीछे की जिंदगी की कोई कहानी आप लोगों को सुना दुं। हां हां.... आप लोगों को मेरी बोरियत भरी कहानी में मेरी बोरियत भरी बेक स्टोरी नहीं जाननी.... मगर आप लोगों की सुन ही कौन रहा है... मैं तो बताऊंगा।”
शख्स ने चलती गाड़ी में पास की सीट के नीचे मौजूद पानी की बोतल उठाई और उसका ढक्कन खोल कर पानी पिया। पानी पीने के बाद उसने बोतल अपने हाथ में ही रखी और मन में कहना शुरू किया “मैं आपको तब का किस्सा बताता हूं जब मैं शायद 15 या 16 साल का था। अब लोगों को इतनी पुरानी बातें याद नहीं रहती मगर मैंने अपनी जिंदगी में हर एक बात को याद रखा है। मैं मेरी बहन के साथ अपने माता-पिता की खुशहाल भरी जिंदगी में रहता था। मगर लड़ाई झगडे वाली आदत मेरे माता-पिता को भी थी। वो लोग दिन में तो नहीं लड़ते थे मगर रात भर तुं तुं मैं मैं लगाए रखते थे। उनकी ज्यादातर लड़ाई का सब्जेक्ट एक्सटर्नल मैरिज अफेएयर होता था। शादी के बाद लोगों के द्वारा बनाए जाने वाले नाजायज संबंध। मेरे पिता मेरी मां को कहते थे कि उनके नाजायज संबंध हैं, और मेरी मां मेरे पिता को कहती थी कि उनके नाजायज संबंध हैं। हालांकि दोनों में कोई भी कम नहीं था। दोनों के ही नाजायज संबंध थे। मेरी मां का नजायज संबंध हमारे फैमिली डॉक्टर से था। वहीं मेरे पिता का संबंध मेरे स्कूल की एक विधवा टीचर से था। वो विधवा टीचर भी इस मामले में कम नहीं थी। मेरे पिता और उनके नाजायज संबंधों में सबसे पहले उसी ने शुरुआत की थी। यानी कि प्रपोजल उसका था। वहीं मेरी मां वाला मामला देखा जाए तो यहां दोनों ने हीं एक-दूसरे को प्रपोज नहीं किया था। उनके रिश्ते आकस्मिक बने थे... और हार्मोन अट्रैक्शन की वजह से बने थे। अब आप लोग कहोगे यह हार्मोन अट्रैक्शन क्या होता है...उफफ... मेरे अनपढ़ पाठक.. हार्मोन अट्रैक्शन का मतलब नेचुरली एक लड़के का अट्रैक्शन एक लड़की की तरफ होता है... और एक लड़की का अट्रैक्शन लड़के की तरफ... यह अट्रैक्शन वाला सिलसिला लगभग 40 साल की उम्र तक चलता है। इसके बाद हार्मोन कमजोर पड़ जाते हैं और अट्रैक्शन वाला सिस्टम बंद हो जाता है। जब मैं 15 16 साल का था तो मेरी मां जवान थी.. ज्यादा भी नहीं... तकरीबन 35 साल की थी। वही डॉक्टर भी इसी उम्र का था। मां बीमार थी... डॉक्टर दिल की धड़कन देख रहा था... और फिर देखते ही देखते ही जो होना था हो गया। खैर... इन दोनों की लड़ाई झगड़े में मैं कभी परेशान नहीं हुआ। मेरी बहन जो मुझसे उम्र में 2 साल बड़ी थी... उसने मुझे हमेशा इस लड़ाई झगड़े से दूर रखा। जब भी हमारे परिवार में लड़ाई झगड़ा होता था... तो वह मुझे एक अलग कमरे में ले जाती थी और उस कमरे में बंद कर देती थी। वह खुद भी मेरे साथ उसी कमरे में बंद हो जाती थी। वहां.... वह उस कमरे में मेरी बहन के पास एक चाबुक होता था। इधर बाहर मेरे माता-पिता लड़ते थे... और उधर अंदर मेरी बहन चाबुक से मुझे मारती थी। हालांकि मैं कभी इसका कारण नहीं जान पाया.... ना ही मेरी बहन ने मुझे मरने से पहले बताया कि वह ऐसा क्यों करती थी। पता नहीं उसके दिमाग में ऐसा क्या था जिसे वह चाबुक के जरिए मुझ पर निकालने की कोशिश कर रही थी। किसी तरह का गुस्सा... किसी तरह का दुख.... किसी तरह की भावना। कभी-कभी तो मुझे लगता था कि मेरी बहन शायद यही मानती थी कि मेरे माता-पिता के लड़ाई के पीछे मैं जिम्मेदार हूं।” शख्स अपने चेहरे से निराश दिखाई देने लगा था। “मगर इसमें मेरा क्या कसूर था....” उसने पानी को दोबारा पिया “क्या मैंने अपनी मां को कहा था...वो डॉक्टर से अपने नाजायज संबंध 15 साल पहले से बना कर रखे? क्या मैंने अपनी मां को कहा था वो शादी के तीन साल बाद ही डॉक्टर से प्यार कर ले? नहीं ना? तो फिर बताओ मेरी बहन के मुझ पर चाबुक मारने का क्या हक, किस हक से वो मुझे चाबुक मार रही थी? आखिर उसने किस हक से मुझे पूरे 8 साल तक चाबुक से पीटा?” उसकी आंखों से हल्के-हल्के आंसू निकलने लगे थे। उसने बोतल को दरवाजे वाली साइड से बाहर फेंका और आसुं साफ किया “हशशश... मैंने भी कौन सा किस्सा छेड़ लिया... शायद मुझे कुछ अच्छा बताना चाहिए था।”
तभी उसने जंगल में अंदर की तरफ देखा। जंगल की तरफ देखने के बाद एक बार उसने सामने की सड़क पर गौर किया और एक बार पीछे की सड़क पर। सड़क वीरान और खाली पड़ी थी। शख्स ने यह देखा तो कार की हेडलाइट बंद कर दी। कार की हेडलाइट बंद करने के बाद उसने रफ्तार कम की और उसे धीरे से जंगल की तरफ मोड़ दिया। चांदनी रात में शख्स को गाड़ी चलाने में दिक्कत हो रही थी, मगर वह फिर भी उसे जैसे तैसे कर सावधानी से आगे बढ़ा रहा था। जंगल में कुछ दूर जाने के बाद उसने गाड़ी रोकी और इंजन बंद कर दिया।
गाड़ी का इंजन बंद करने के बाद वह नीचे उतरा और आस पास के जंगल को देखा। आस पास के जंगल को देखने के बाद उसने अपने मन में कहा “बाप रे!! एक हॉरर कहानी का राइटर यहां होता तो उसे तो मजा ही आ जाता। मैं जिस पब्लिकेशन में काम करता हूं वहां कुछ और राइटर है... उनमें से कोई एक यहां होता तो बढ़िया सीन बना कर वाहवाही लूट लेता हूं। लोग मर पड़ते ऐसी सीन पर... खैर... मैं जो पहले मरा है उसे ठिकाने लगा दूं।”
वह डिक्की की तरफ गया और डिक्की खोली। डिक्की खोलने के बाद पहले उसने पॉलिथीन वाली थैलियों को उठाया और उन्हें बाहर निकाला। इसके बाद लाश उठाई और उसे उठाकर बाहर पटका। लाश के ठीक नीचे गड्ढा खोदने वाला फावड़ा पड़ा था। शख्स ने फावड़ा उठाया और उठा कर कंधे पर रखते हुए सामने के पेड़ों के बीच चलने लगा।
पेड़ों की तरफ चलते हुए उसने अपने मन के विचारों में कहा “पता नहीं क्यों... एक क्राइम लेखक होने के बावजूद मेरे दिमाग में हॉरर सीन फुदक फुदक कर आ रहे हैं। इस तरह का एक सीन विपाशा बसु की किसी फिल्म में भी था.... वहां ऐसे ही पेड़ों के बीच जाकर लाश को दबाया गया था.. जिसने बाद उसे भूत बनकर तंग किया। फूल वाले लड़के...!! देखो मेरी बात ध्यान से सुन लो!! मैं तुम्हें यहां जंगल के पेड़ों के बीच गाड़ रहा हूं....ऐसे में आगे चलकर भुत वुत बनकर डराने वाले काम बिल्कुल मत करना। सच में मुझे भूतों से बहुत डर लगता है। खुदा ना खासता अगर तुमने ऐसा कुछ किया... तो आने वाले समय में लाश ठिकाने लगाने के लिए मुझे जगह की तंगी पड़ जाएगी।”
उसने पेड़ों के बीच एक बढ़िया सी जगह ढूंढी और फिर फावड़े से उसे खोदना शुरू कर दिया। एक बार खोदना शुरू करने के बाद वह जगह को खोदता ही गया।
★★★
Ammar khan
30-Nov-2021 12:36 PM
Nice
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Seema Priyadarshini sahay
15-Sep-2021 04:26 PM
बहुत ही रोचक भाग
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BhaRti YaDav ✍️
29-Jul-2021 08:21 AM
Nice
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